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________________ आगम (०१) प्रत वृत्यंक [९६ १०४५ दीप अनुक्रम [९८१०८] श्रीआचारांग सूत्रचूर्णिः २ अध्य० ६ उद्देशः ॥ ९६ ॥ “आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्ति: + चूर्णि :) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [२], उद्देशक [६], निर्युक्तिः [१९७..], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक ९६-१०४] कम्मस्स कुसला परिण्णाउं, एवं अडविहकम्म जाणणापरिण्णा बसव्वा, तस्स अस्सवे य, तंजहा- नाणपडिणीययाए दंसणपडि| णीययाए० एवमादि णच्चा पञ्चक्खाणपरिष्णाए पडिसेहेति, जं भणितं आसवदारेहिं ण वति, 'सव्वसो'ति सव्वप्यगारेहिं, जो | जहा बज्झति जचिरकालठितियं वा बंधति अहवा केवली सब्वं परिष्णाय कहयति चोहसपुच्ची सब्वे पण्णवणिजे मावे जाणति, गणहरपरंपरएणं जाव संपण्णं, कहा चउच्चिहा, तंजहा-अक्खेवणी विकखेत्रणी संवेयणी शिब्वेयणी, ताहे कहेइ सो केरिसओ १, | भण्णति- 'जो अणण्णदंसी' अण्ण इति परिवञ्जणे तिणि तिसडा पावातियसया अण्णदिड्डी, अणण्णदरिसी बताई तत्वद्वीए पेक्खति, इमं एवं जइणं तत्तबुद्धीए पासति, जो अगण्णदिट्ठी सो नियमा 'अणण्णारामो' ण अण्णत्थारमतीति अणण्णा| रामो, गतिपञ्चागतिलक्खोणं भण्णति - 'जे अणण्णा राम्रो' से णियमा अण्णदिट्ठी, जं भणितं सम्मदिट्ठी, ण य अण्णदिट्ठीए रमति, तहा विसयकसायादिलक्खणे अचरिचे अतवे ण य रमति, सो एवंविहो अन्नंपि ठावयति केवलीपण्णचे धम्मे चउब्विहाए | कहाए अरसो अदुडो आघवेमाणो पण्णवेमाणो, बीयरागे सुणिउणं संपञ्च्चयो भविस्मति, तं कई ?, भण्णति- 'जहा पुष्णस्स कत्थति तहा तुच्छस्स' पुण्णो णाम सव्यमणुस्सेसु रिद्धिमां चकबड्डी तदणंतरं वासुदेववलदेवमहामंडलियईसर जाव सत्यवाहादि, तुच्छा तणहारगादि, अहवा पुण्णो जाइसंपण्णाति तत्रिवरीओ तुच्छो, अहवा बुद्धिमंतो पुष्णो मंदबुद्धी तुच्छो, जेण आय| रेग जेण आलंबणेण पुण्णस्स कहिअति तहा तुच्छस्स, गतिपञ्चागतिलक्खणेण जहा तुच्छस्स कहिजति तहा पुण्णस्स, जं भणितं - जहा तुच्छरस ण अण्णहेउं च कधेति तहा पुण्णस्सवि, सोयारं वा प्रति विष्णाणकहाए वायसंपन्ने विवजओ, विष्णागमंतस्स निउणं कहिजति धूलबुद्धिस्स जहां परियच्छति तहा कहिजति, भणियं च "निउणं अत्थं०" "तत्थ आलंबणं तुलं०” उस्सग्गेणं मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र -[०१], अंग सूत्र [०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [100] सर्वकथनं ।। ९६ ॥
SR No.006201
Book TitleAagam 01 ACHAR Choorni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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