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प्रति आग्रहशील बने । पूज्य श्री ने चातुर्मास के अंतिम दो महिनों में विपक्षी द्वारा उठाये गये तांडव को शमित करने के लिये अत्यधिक परिश्रम उठाया तथा अकेले ही स्थानकवासियों की दलीलों, शास्त्रपाठों तथा विषय को प्रतिपादन पर आधारित पूज्य श्री की प्रतिभा को खंडित करने की समस्त अभिलाषाओं को निष्फल करने में समर्थ हुए।
चातुर्मास पूरा होने के बाद में बदनावर के सेठ जड़ावचंद के घर में श्राविका के ज्ञान पंचमी तपकी पूर्णता में उद्यापन करने का भाव होने से पूज्य श्री को माघ सु 3 से प्रारंभ होने वाले उत्सव में पधारने को आग्रह भरी विनती की । पूज्य श्री ने कार्तिक वि 2 के मंगल दिन रतलाम श्री संघ से भाव भरी विदा लेकर करमदो तीर्थ पधार कर श्री संघ की तरफ से पूजा स्वामीवत्सल इत्यादि होने के पश्चात् का. वि. 11 बदनावर की तरफ विहार किया । का. वि 13 बदनावर शहर में भव्य स्वागत सहित प्रवेश किया।
व्याख्यान में श्रावक जीवन की महत्ता तया तपधर्म की अनुमोदना पर खूब सूक्ष्मता के साथ तात्त्विक पदार्थों का प्राकरण होने लगा। स्थानकवासी तथा वैष्णवों आदि अन्य दर्शनार्थों घी पूज्य श्री की तात्त्विक देशना से खूब प्रभावित हुए । इस महोत्सव के सम्बन्ध में बखतगढ़, बिड़वाल, उणेल बड़नगर आदि आस-पास से आए पूण्यवंत श्रावकों ने अपने
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