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________________ 1 इसके कारण स्थानकवासी संघ में रूढ़िकुशल मानस वाले एक बड़े वर्ग में पर्युषण के पश्चात बहुत उहापोह मचा तथा चातुर्मास स्थित साधू-साध्वियों में कौप्रा - शोर मचाकर मूर्ति पूजा हंबग है, अशास्त्रीय है फिर से ऐसा आवाज उठाई । भांति-भांति के चित्र-विचित्र तर्क-कुतर्क की परम्परा प्रारम्भ की । इस पर भो पूज्य श्री ने अपने मोठे मधुर उपदेशों द्वारा श्री जैन संघ श्रावकों को खूब धैर्य रखने को जतलाया । स्वयं विशिष्ट समता तथा घृणा से युक्त स्थानकवासियों को तरफ से आते विविध आक्रमणों का योग्य प्रतिकार करने लगे । इस प्रसंग में पैंतालिस आगमों में से स्पष्ट मूर्तिपूजा के पाठवाले तेरह आगमों को अमान्य करके बतीस आगमों को भी मूल मात्र मानने की पकड़वाले स्थानकवासियों के अर्थघटन की विषमता का सहारा लिया । अतः पूज्य श्री ने स्थानकवासियों के द्वारा मान्य बतीस श्रागमों में से ही मूर्ति पूजा को वास्तविक समझने वाले पाठों की सारांश विवेचनावालो "भक्ति प्रकाश" नाम की लघु पुस्तिका जनता के विचारने के लिये छपवाकर प्रकाशित की। इसे पढ़कर कम पढ़े हुए लेकिन प्राराधक व्यक्तियों ने स्पष्ट रूप से बतील आगमों में भो मूर्ति पूजा के यर्थाथता जाने-समझे तथा व्यर्थ की वाणी - तांडव ( बकवास ) को अयोग्य मानकर सत्य के ७३
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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