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________________ दोपहर दो से चार बजे के बीच में मिलने आ सकते थे संमति प्रकट की। तीनों जानकर श्रावकों ने पूज्य श्री से सम्पर्क साधकर विविध स्पष्ट खुलासा जानकर बड़ा संतोष व्यक्त किया तथा पूज्य श्री की प्रतिभाभरी विद्वता से प्राकर्षित हुए । परिणामस्वरुप उन्होंने उहापोह में रही कटुता तथा श्राक्षेपात्मक नीति बंद करवा दी । सरल-भद्र जनता को जिज्ञासु भाव से सत्य समझने के द्वार खुले कर दिये । जिसके परिणामस्वरुप दो सौ ढ़ाई सौ घर के समुदाय पूज्य श्री के व्याख्यान आदि का लाभ लेने लगे । इससे उनके हृदय में मूर्ति पूजा की प्रामाणिकता के हेतु सचोट विश्वास होने से उन लोगों ने जिन शासन की मर्यादा प्रमाण में श्रावक के रूप में आचरण में दहेरासर दर्शनपूजा आदि में प्रवृतिवान होने लगे । चातुर्मास के बीच में इस प्रकार के स्थानकवासी संघ के उम्र वातावरण की शांति तथा सैंकड़ों की मूर्तिपूजा की श्रद्धा उत्पन्न हो जाने के परिणाम स्वरुप रतलाम जैन श्री संघ ने पूज्य श्री को सच्चा शासन प्रभावक समझकर खूब आदर सम्मान किया । पर्यूषण में नवालन्तुक घाधिकों की बहुत बड़ी संख्या ने तपस्या आदि चढ़ाने में बहुत लाभ लिया । ७२
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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