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जिसमें कितने आग्रही मान के विकृत कारण कड़वाहट फैलाने वाला वर्ग विगृह का वातावरण जमने लगा।
परिणामस्वरुप समझदार वर्ग धीरे-धीरे खिसकता गया । पूज्य श्री ने तात्विक विचार की भूमिका उपयोगो नहीं लगने से बाद में वाड़ी में जाना बंद कर दिया। वितंडावादी स्वरूप से सत्य की शोभा बिखर जाती है इस बात का प्रत्यक्ष अनुभव हुमा । कुछ दिनों बाद बात खुली बातचीत टूट गयी पर अन्तर मतभेदों की ग्रन्थिय यथावत थी। यदाकदा अपने ही तरीके से आक्षेपात्मक नीति के वर्ग की विकृत बातें प्रसारित होने लगी।
पूज्य श्री आक्षेपात्मक नीति के पीछे लगो हुई मनोवृति को पहचान कर मूल बात को पकड़ रखा तथा जनता के मानस पर सत्य तत्व की झॉकी मंडन शैली से करने लगे। रतलाम श्री संघ में आये इस झकझोरे गये वातावरण में चातुर्मास का लाभ फिर मिलने का आग्रह रखकर पूज्य श्री ने जेष्ट विद 10 के मंगल दिन चातुर्मासिक प्रवेश कराया । स्थानकवासी श्री सघ में श्री हरखचंद जी चोपड़ा, किशनलाल जी मानावत तथा श्री सुखमल जी बोथरा वयोवृद्ध तथा स्थिर बुद्धि प्रागमि बातों को सूझपूर्वक समझने वाले थे। उन्होंने पूर्व सूचना कहलाकर पूज्य श्री के पास जिज्ञासा से मिलने की इच्छा प्रदर्शित की । पूज्य श्री ने भी चाहे जब