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लोगों ने व्याख्यान में बहुत लाभ लिया। तेगपंथी श्रावकों ने अपने दान-दया के विचारों को रूपान्तर कर पूज्य श्री के प्रतिभा को धूमिल करने के उद्देश्य से प्रश्न पूछने का दुःसाहस किया । परन्तु अनुकम्पा दान की मार्मिकता तथा सुपात्र को दिये दान की विशिष्ठता के वर्णन के साथ दानधम की तात्विक बातों के प्रकट करने से तेरापंथी श्रावक भी पूज्य श्री के आगे हतप्रभ बन गये।
बाद में वेसाख सु. 7 के लगभग पूज्य श्री रतलाम पधारे । स्थानकवासी श्री संघ के श्रावकों के मार्फत कहलाया कि “ मैं आ गया हूं । छोगमल जी म. को मूर्तिपूजा के संबंध में जो कहना हो उसे प्रकट करें। मैं उसका खुलासा देने को तैयार हूं।" गणेशीलाल जी ने कहलाया कि "खुले स्थान में बैठकर हम लोग विचार करें। शास्त्र पाठों को प्रसारित करें तो परिणाम जल्दी प्राप्त होगा" इस मुजब की बातचीत से सनातनियों की जाति-स्थान (पंचायतो नोहरा) पर पूज्य श्री अपने श्रावकों के साथ तथा स्थानकवासी अपने श्रावकों के साथ वहां पधारे।
तीन से चार दिन दो पहर दो से चार बजे के समय में विचार-विमर्श चला । अनेक तर्क-वितर्क, शास्त्र पाठों की विचारणा पकड़वाली विचारणा, अर्थघटन की विचित्र शैली तथा स्थापित रूढ़ मान्यताओं आदि का प्रसारण हुआ ।