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बात को प्रकट करने को सरल कर दिया ।
अनेकानेक शास्त्र पाठों से पूज्य श्री ने "प्रभु पूजा" यह तो श्रावकों का कर्तव्य है । सर्व विरति प्राप्त करने का प्रमुख साधन है" इस बात को सर्वसाधारण को प्रकाशित की । परिणामस्वरुप कितने ही भावुक - पुण्यात्माओं को संवेगी परम्परा के अनुयायी बनाने के सौभाग्यशालो बने । मासकल्प को स्थिर कर इन्दौर चौमासी फाल्गुन पधारे । वहां संवेगी परम्परा के मुनियों के बहुत कम आगमन से धुमिल पड़ी धर्म-छाया को व्याख्यान वाणी से प्रभावशाली बनाकर अनेक धर्म पिपासु लोगों को सन्मार्गाभिमुख बनाया | त्रिस्तुतीक मतवाले कितने ही ग्राग्रही लोगों ने व्यर्थ में चर्चा का नाटक खड़ा किया । पूज्य श्री ने खुले में शास्त्र पाठ के साथ चर्चा करने को स्वीकार किया लेकिन कोई भी सम्मुख नहीं आया ।
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इन्दौर श्री संघ चैत्री - प्रोली के लिए स्थिरता के साथ चातुर्मास की प्राग्रह भरी विनती की । पूज्य श्री ने क्षेत्र स्पर्शना के आधार पर निश्चित उत्तर नहीं दिया । परन्तु चैत्री - प्रोली के बीच में रतलाम श्री संघ के आग्रगण्य आठदस अगुवा ये और पूज्य श्रा से बात की कि "उज्जैन में जिन छोगमल जी घासी लाल जी स्थानकवासी साधुनों के साथ आपकी जो चर्चा हुई थी उसके छींटे रतलाम में भी
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