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________________ व्याख्यान में स्थापन निक्षेप की असारता एवं "हिंसा में धर्म नही" इत्यादि बातें रखी पूज्य श्री ने व्याख्यान पूरा किया ही कि, तुरन्त स्वयं ने सक्षेप में परन्तु दांत खट्ट करने वाले शास्त्र पाठ तों से स्थानकवासी मुनियों की बातों की पोल खोल दी। उपस्थित जैन, जैनेतर जनता खूब प्रभावित हुई । पूज्य श्री को दूसरे दिन आग्रह पूर्वक रोक कर सर्वसाधारण में व्याख्यान कराया । उसके पश्चात् पो सु. 3 के मंगल दिन उज्जैन पधारे । वहां स्थानकवासी का खूब जोर था । वहां अपने जिनालय पूर्णतः जर्जरित एवं खंडहर जैसी स्थिति में हो गये थे । संवेगी परम्परा के साधुओं से सम्पर्क के अभाव में तथा शिथिलाचारी साधुओं की विषम प्रवृतियों से मुग्ध जनता को उत्साहित कर ढंढूकों ने जबरदस्त पावों का प्रसार कर रखा था। पूज्य श्री जहां उतरे थे, वहां पास के जिनालय के बाहर प्रेक्षामंडप में स्थानकवासी श्रावक रात्रि में सो जाते तथा दिन में अनाज सुखाते । कभी-कभी उनके साधुओं को भी वहां उतारते । पूज्य श्री ने अपने श्री सघ का इस तरफ से ध्यान आकर्षित किया तो विदित हुआ कि वह मंदिर उनकी जाति वालों द्वारा निर्माण कराया गया तथा उनकी ही व्यवस्था में संचालित है । अतः हम कुछ कर नहीं सकते।
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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