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________________ पूज्य श्री ने मंगलाचरण करके बालयोग्य शैली से सनातन तथा धर्म इन दो शब्दों का अर्थ, समझाकर तत्वज्ञान की वास्तविकता में भारतीय दर्शनों में एक सरीखा हैं । केवल उसकी विवेचना की पद्धति तथा निरूपण के प्रकार में अन्तर है । इस बात को खूब स्पष्ट किया । "सनातन धर्म शब्द से कोई एक संप्रदाय को सम्बोन्धित नहीं किया जा सकता।" इस बात का घटस्फोट विष्णुराण, भविष्य पुराण, मार्कण्डेय मण्डूकोपनिषद तथा वेदों के कितने ही मंत्रों तथा आगमों के प्रमाणों का उद्धरण "सनातन धर्म मतलब क्या ? उसे स्पष्ट किया? फिर उसके रहस्य में प्रात्मा-परमात्मा, संसार जन्म मरण आदि तत्वों की मौलिक छानबीन के साथ वास्तव में आस्तिक कौन ? इसे व्याख्यान की संयुति में उस दिन का प्रवचन पूरा हुआ। कहीं भी खंडन की बात नहीं तथा सनातनियों के द्वारा मान्य किये पुराणों, उपनिषदों तथा वेदों की ऋचाओं के आधार पर सनातन धर्म का कैसा निरूपण जैन धर्मगुरु ने किया इसे सुनकर अबाल-गोपाल सब हो बहुत प्रसन्न हुए। लोगों ने मांग की कि महाराज ! यह चीज तो हमने अाज नई सुनी । बड़ा ही मजा आया । कृपा करो आपकी वाणी सुनने का फिर मौका दो। अतः पूज्य श्री की सूचना से जैन अगुवाओं ने से फिर इसी विषय पर पूज्य श्री का प्रवचन यहीं
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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