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________________ मार्मिक तर्कों के साथ सन्यासी महात्मा को लिखकर भेजा और उसका उत्तर मांगा। जिज्ञासा भी बढ़ी कि जैन धर्म गुरु "सनातन धर्म का रहस्य विषय पर खुले में बोलेंगे । यह क्या? सन्यासी महात्मा की कड़वी भाषा, आक्षेपात्मक नीति से जनता का एक बहुत बड़ा भाग उमड़ पड़ा वे सब सत्य जिज्ञासा धारण कर व्याख्याब के लिए निर्धारित किये दिन की आतुरता से प्रतीक्षा करने लगे। पूज्य श्री ने श्री संघ के मुखियाओं को कहकर सबकों एक बात की जानकारी करा दी कि खुले में कोई भी बात समझे बिना तथा मेरे आशय को समझे बिना खुले में कोई भी नहीं बोले । जो पूछना हो वह मुझे मिलकर स्पष्ट करा सकता है। अन्य बात-सनातनियों की तरफ से चाहे जो प्रश्न आवे वे किसी भी प्रकार बोलें तो तुम्हें किसी भी प्रकार बुरा नहीं लगना । उस सबका खुलासा मैं करुंगा । तुम्हें अन्दर ही अन्दर कलहाचार में नहीं उतरना।” इन दो के सम्बन्ध समस्त संघ के सब ही लोगों का ध्यान विशेष रूप केन्द्रित कराया गया। निश्चित किये गये दिन नियत समय पर पूज्य श्री सैंकड़ों श्री संघ के भाई बहिनों के साथ चांदनी चौक में पधारे वहां तो जैनेतर जनता पहले से ही उपर पड़ती चीटियों की तरह उमड़ रही थी। fo
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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