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देखों! दो चार दिन एक पत्रिका छपवाकर प्रचार करो कि चांदनी चौक में जैन धर्माचार्य श्री की आम सभा का खुला प्रवचन "सनातन धर्म क्या है ? इस विषय पर होगा।
बस फिर अपने को कोई आक्षेप या कटुभाषा नहीं वापरना है, किन्तु शब्द की आड़ में इन शब्द पंडितों ने जो ताडव रचा है उसे खोखला करना होगा “घबराओं मत जब रोग बहुत बढ़ जाता है तो इलाज भी जल्दी करना होता है। श्री संघ के आगे वालों ने पूज्य श्री की बात को मंजूर रखो। मोटे अक्षरों में पत्रिका छपवाकर किसी त्यौहार के दिन जब बाजार पूरा बद था ऐसे दिन चांदनी चौक में खुला व्याख्यान रखा । खूब प्रचार किया। लोगों में अन्ततः मध्यस्थ भाव वाले उन सनातनियों ने सन्यासी महात्माओं को धर्म की बातों को तनिक शांति से प्रस्तुत करने की कह कर अपने अपने स्थान पर गये।
कुछ दिनों बाद पुनः सन्यासी महात्मा ने "जैनी नास्तिक है" जैनों का स्यादवाद कुतर्कवाद है "जैनों के सिद्धान्त बिना ढंगधड़े के हैं" इस मतलब के उच्चारण किया । परिणामतः पूज्य श्री जैन मुखिया श्रावकों ने वेद पुराण तथा उपनिषदों के लिए लिखित प्रमाणों को देकर सनातनियों की मान्यता कैसी भ्रामक है उसे दर्शाने के साथसाथ जैन धर्म तथा उसके स्यादवाद की गंभीरता का