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________________ विस्फोट-अशांति होगी इत्यादि मतलब की बात कही । परन्तु सन्यासी तो जड़भरत की तरह अपनी बात को चिपटे रहे और अगुवाओं को भर्त्सना की कि क्या तुम लोग बनियों के गुरु की बातों मे आकर सनातन-धर्म को महिमा बढ़ाने वाले हम पर रोब लगाने आये । चलो ! हटों यहाँ से हम कोई ऐसी बातों से दबने वाले नहीं । आदि। सनातमी अगुवाओं ने बहुत दया भरी विनती करके खडन शैली के बदले सनातन धर्म के तत्वों तथा उनको महिमा मंडन शैली से वर्णन करने के लिए बिनतो की । परन्तु पत्थर पानी की तरह सन्यासी-महात्मा सनातनी अगुवाओं की बात का कोई असर नहीं हुग्रा । बात तय हुई कि उसके अनुसार सनातनी मुखियाओं ने जैन संघ के प्रागुवानों को दूसरे दिन दोपहर कहला दिया कि “हमने काफी कोशिश की । किंतु कोई सारांश नहीं निकला । क्या करें ? काल की गति विचित्र है आदि । जैन श्री संघ के प्रमुखों ने यह समाचार पूज्य श्री को जताया इसलिये पूज्य श्री ने श्री संघ के अगुवानों को कहा कि “अब ढोली नोति कायरता बतायेंगे। अपने को लड़ना नहीं अपने को तो जनता के सामने सत्य रखना है । थोड़ा सा उग्रस्वरुप दिखाये बिना ये शब्द पंडितों की अक्ल ठिकाने नहीं आयेगी । जरा सी चिमकी तो देनी ही पड़ेगी । ५८
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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