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रीति से प्रवचन करें तो उत्तम । इस मतलब की बात प्रकट की।
आमंत्रित सनातनी प्रमुखों में समझू, सयाने, समयचतुर होकर उसी प्रकार सन्यासी महात्मा की कठोर भाषा खंडनशैली तथा उग्रताभरी प्रवचन शैली से परिचित थे । अतः जैन अग्रगण्य व्यक्तियों की बात पर गंभीरतापूर्वक विचार करके कहा कि," "आप लोगों की बातें ख्याल में आई । धर्म और शास्त्र की बातें तो बड़ी गहन है । और अपने जैसे संसारी मोह माया के जीव इन बातों को क्या समझ सके ? अच्छा तो यह है कि दोनों धर्म गुरु साथ बैठकर अपने विचारों का आदान-प्रदान कर लें और दोनों धर्म की सम्मति से जो सही बात तय हो, वह जनता को बताई जावे । बाकी प्राक्षेपात्मक नीति, वाद-विवाद और चर्चा से अाम जनता के पल्ले क्या पड़े ?
हम इसके लिए पूरी कोशिश कर परिस्थितियों को सुलझाने का भरसक प्रयत्न करेगे । हम कल शाम तक आपको समाचार पहुंचा देगें । जैन अगुवाओं ने इस मध्यम मार्ग से शान्ति तो ठीक, यो धारण करके पूज्य श्री को भी समाचार विदित कर अवसर-"प्रतीक्षा हेतु विनती की । सनातनी अगुवानों ने भी सन्यासी महात्मा कोफिर से शांति से सारी बात समझायी और अब प्रवचन शैली नहीं बदली तो यहां भारी