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लोग महात्मा जी को समझावें । देखों ! हमारे गुरुजी ने वेद पुराण एव उपनिषदों के ढेरों प्रमाण निकाल रखे हैं. उ .में के कुछ आपकों प्रस्तुत किये हैं, ढंग से बातचीत हो तो सत्य तत्व का परिचय आम जनता को प्राप्त हो ।' यह कहकर जैन मुखिया अपने स्थान लौट आये।
सनातनी मुखियात्रों ने उन शास्त्रों के पाठों के मात्र कागज बता कर सन्यासो महात्मा से प्रवचन-शैली में सुधार करने को विनतो की, परन्तु उत्तर प्रदेश के अडबंग शास्त्री जैसे सन्यासी ने तो अधिक उत्तेजित होकर जैन धर्म तथा उसकी मान्यता के सम्बन्ध में बढ़कर आक्षेप किये।
पूज्य श्री झवेर सागर जी म. ने श्री सघ के अगुआवों को बुलाकर “सीधी ऊँगली घी नही निकलता' कहावत के आधार पर बॉके लकड़े को बॉका चीरना" की व्यवहारी नोति अपना कर जिन शासन की हो रही लघुता को रोकने के लिए प्रयत्नकरने की तैयारी दर्शायो । जैन संघ के अगुवाओं ने भी वस्तु स्थिति का अभ्यास करके यथायोग्य करने की विनती करजतलाया कि "बावजी आपकी आज्ञा हमें शिरोधार्य है । किन्तु आप तो चातुर्मास करके पधार जाओं। हमें तो यहीं रहना है । दिन रात सनातन लोगों के साथ व्यवहार करना पड़ता है । अत: उपाय और हैं । उसे हम आजमा लें फिर यदि मामला न बैठें तो जैसा आप कहेंगे