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सन्यासी महात्मा तो छिछले विद्वान तथा मात्र आडंबरी ज्ञान के कारण सत्य बात सुनने को तैयार नहीं होने से सार असार के विचार करने के विवेक के अभाव में धमधमातो उत्तेजना में आ गये तथा यद्वा तद्वा प्रलाप करने लगे । जैन के मुखि यात्रों ने ठंडक से बात करते हुए जतलाया कि "आप ज्ञानी है । ज्ञानी की बातों को हम क्या समझें । किन्तु लोगों में बड़ो चर्चा हो रही है । हमारे गुरु जी और आप बैठकर सत्य बात तय कर लोगों के सामने रखें तो अच्छा ।" जैन मुखियाओं ने और अधिक कहा कि " नहाना - घोना तो गृहस्थियों का काम हैं । प्राप लोग तो शुद्ध ब्रह्मचारी ! आपके शरीर में गंदगी कैसे हो ? और ये सब बातें भी रूबरू बैठकर परामर्श करलें कि नास्तिक किसे कहते हैं, देखिये । हम ये सारे वेद पुराण उपनिषद आदि के प्रमाण हमारे गुरूजी के दिये हुए लाये हैं । हम क्या समझें इनमें । आप और हमारे गुरूजी बैठकर कोई निर्णय करें तो अच्छा । फालतू अनपढ़े लोगों के सामने भैंस आगे भागवत की ज्यो शास्त्र की बातें करने से क्या फायदा ?
सन्यासी महात्मा चिढ़कर उठकर चलते बने । जैन मुखिया लोगों ने उन पाठकों के पात्रों को सनातनियों के कुछ मुख्य लोगों ने उन पाठकों को दे दिये और कहा कि "इस तरह एक-दूसरों को उतारने की यह नीति ठीक नहीं | आप
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