________________
सनातनिय पूज्य श्री की शांत-उद्वात प्रवृति देखकर अत्यधिक संतुष्ट हुए तथा जैन धर्म की विशेषताओं से प्रभावित होकर अपने स्थान पर गये।
सन्यासी महाराज के पास जाकर जिज्ञासु भाइयों ने बात की- “महाराज ! हम जैनी-धर्माचार्य के पास गये थे। उनकी बातों से उनकी उदात्त-प्रकृति का परिचय पाया है, वे बड़े मधुर-स्वभाव के शांत प्रकृति के महात्मा है उन्होंने हमें जैन धर्म के बारे में संक्षेप में बहुत अच्छा समझाया। उनको सनातन धर्म के बारे में भी काफी जानकारी है तो हमारी नम्र अर्ज है कि आप प्रवचन में अपनी बात ढंग से समझाइये, किन्तु दूसरों पर कटाक्ष रूप एवं जैन धर्म के बारे में अपेक्षात्मक बातें न हों तो अच्छा । नाहक ही भोली जनता धोखे में पड़ती है और धर्म के नाम पर झमेला बवंडर शायद उठ जाय, ऐसा हो तो हमारी शान्ति बिगड़े। .
सन्यासी महाराज बोले कि "अरे ! तुम लोग तो निरे भोंदू हो! तुम लोग उधर गये ही क्यों ? ऐसे नास्तिकों का मुंह देखना ही पाप है । तुम उनकी चिकनी चुपड़ी बातों की लपट में आ गये । क्या वरा है उन जैनों में । जो ईश्वर को नहीं मानते हैं । मनमानी करके लोंगों को धोखा देते हैं, उन जैन साधुओं की ढकोसले में आप वहां फँस गये आदि सन्यासी म. के खूब यद्वा-तद्वा प्रलाप सुनकर जिज्ञासुगण
५२