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सत्य को स्वीकार करने में हमें कोई संकोच नहीं । किन्तु सत्य तो है तो है ! उसे अपनी बुद्धि के अनुरूप बनाने का दुष्प्रयत्न तो सत्य को विकृत बना देता ।
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हम जेन धर्मों ईश्वर को मानते न हो हैं । देखो ! ये हजारों मंदिरों लाखों-करोड़ों की लागत के जैनों ने ही बन वाये उनकी पूजा आदि भी कितना भाव-भक्ति से की जाती है । हम जैन धर्मो ईश्वर को मानते नहीं हैं । यह कहना सरासर झूठ है । हां ईश्वर को मानते हुए भी उसके स्वरुप में भेद है । अनन्त गुण सम्पन्न शक्तिशाली परमेश्वर परमात्मा को ईश्वर रूप में जैनी मानते हैं । फिर भी ईश्वर पर जगत् कर्तव्य जो दलीलों के सहारे रोपा गया है, उस पर जैनों का विश्वास नहीं ।" इतना पूज्य श्री ने कह कर जगत्कर्तव्य वाद का थोड़ा सा निरूपण कर उसके विस्तार को प्रकट किया जिसे सुनकर आये हुए सनातन धर्मी खूब खुश हुए । कि महाराज ! सनातन और जैन धर्म में खास फर्क क्या? यह जानना जरूरी है "पूज्य श्री ने कहा कि " महानुभावों ! यह चीज तो काफी लम्बी चौड़ी है, किन्तु फिर भी संक्षेप में जैन धर्म त्याग - प्रधान एवं आचार शुद्धि पर अधिक जोर देता है. जैन धर्म में कर्मवाद का सिद्धान्त एवं स्याद्वाद, अनेकांतवाद और कठिन जीवन चर्या, प्रधान रूप से मुख्य है ।" जिज्ञासू भाव से मिलने आये
अन्त में जाते हुए यूँ कहा
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