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________________ परम्पराओं का यथार्थ सचोट सिद्ध किया । तटस्थ समझदार तथा विवेकी महानुभावों ने सत्य को जान लिया । चर्चा वितडांवाद के प्रथम चरण में कितने ही लोगों ने आगे बढ़ाये। दोनों पक्षों की तरफ से भांति-भांति को बातें प्रवाहित होती रही परन्तु समझदार विचारक आत्मानों ने वास्तविकता की परख कर अज्ञान जन्य वाद विवाद शास्त्रार्थ आ द की घटा बढ़ी मे अलविदा रहने का प्रयत्न करने लगे। ____ सम्पूर्ण चातुर्मास में स्थानकवासो तथा त्रिस्तुनिक मत वालों की तरफ से अनेक सम-विषय कटु-मिष्ठ प्रसगों तथा चर्चा-वाद विवाद इत्यादि घटनाओं से वातावरण उत्तेजित रहा । पूज्य श्री ने सैद्धान्तिक तस्वों को आगे बढ़ाने के अतिरिक्त छोटी-मोटी बातों पर अधिक महत्व ही नहीं दिया। चातुर्मास धूरा होने पर रतलाम के आसपास के क्षेत्रों में विचरण कर जिन शासन की तात्विक पहचान संवेगी साधुओं के विहार के अभाव में नहीं प्राप्त होने से मुग्ध जनता में श्री वीतराग भक्ति प्रभु-पूजा, व्रत नियम पच्चखाण आदि धार्मिक परम्परागों जो दैनिक आचरण विस्मृत हो गई थी उन सबको ताजी की । अनेक जिन मंदिरों का जिर्णोद्वार करवाने के साथ-साथ लोगों की धार्मिक भाषनाओं का भी जीर्णोद्वार किया। ... श्री संघ के आग्रह से पुनः वि.सं. 1930 का चातुर्मास
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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