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________________ भी रतलाम में किया। लोगों में स्थानकवासियों तथा त्रिस्तुनिक मतवालों के चालू उहापोह के कारण डगमगाती श्रद्धा को स्थिर करने के लिये भगोरथ प्रयत्न किया। चातुर्मास की अवधि में अनेक धर्म कार्य हुए । लोगों में धर्म भावना खूब बढ़ी अनेक विपक्षियों ने भी सत्य-तत्व की समझ एकत्रित कर आचार शुद्धि का तत्व विकसित किया। चातुर्मास के पश्चात् जावरा, महीदपुर, खाचरोद त्रिस्तुनिक मतवालों तरफ से वागावरण रूपचर्या का पगारण हुआ जिसके परिणाम स्वरूप पूज्य श्री ने धैर्य-पूर्वक मंडनात्मक शैली से अनेक भव्य प्राणियों को मार्गस्थ बनाया। महीदपुर में भव्य अष्टाहिका महोत्सव का उद्यापन भी हुप्रा । आसपास के गांवों में पूज्य श्री ने विहार कर अज्ञानदशा से खंडित बने शिथिलाचारो यतियों के विचार के नाम पर आचार घर कर गये स्थानकवासी के विकृत प्रचार से बढ़ने लगी अनेक अज्ञानताओं को दूर करके उज्जैन, इन्दौर की तरफ जाने का विचार किया परन्तु रतलाम में सनातन दंडो स्वामी श्री नारायण देव जी के अद्वैतवाद काझण्डा आगे करके श्री शंकराचार्य के ग्रंथों के आधार पर वैदिक धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों के संप्रदाय नितान्त मिथ्या है । ऐसा जोरदार विचार प्रबल किया। अपने प्रवचनों में ऐसे कटाक्ष ४८
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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