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________________ मिथ्यात्व की आग्रहभरी मान्यताओं की पकड़ ढीली कर सके । अपने साधुओं तथा पक्ष के सर्वोच्च प्रमुख को सत्य तत्व को समयुति देने लगे परन्तु मताभिनिवेशना के कारण स्थानकवासोसंघ में खलबलाहट अधिक उग्र बन गई । कुतर्क तथा एक तरफी दलोल व्यक्तिगत प्राचार-शिथिलता की बातों को अलग रखकर पूज्य श्री को प्रतिभा को खंडित करने का वातावरण सृजित हुआ। पूज्य श्री ने तो तत्व दृष्टि को सामने रखकर एक बात ध्यान में रखी किः- “अधिकांशतः अभिनिवेश वाली पांखडियों को सीधी राह सत्य तत्व को उलटना अशक्य समझकर आड़ी तिरछी असंबद्ध तथा मिली-जुली बातों के आक्षेपों को प्रकट कर सामने के पक्ष को उत्तेजितना में लाकर सत्यतत्व के प्रतिपादन की दिशा में से मिली हुई बातों को स्पष्ट करने के उल्टे रास्ते मुंहजोरी की बातों से शक्ति को अपव्यय करा थका दे यदि मूल बात को मिथ्या तर्क बाजी में कटवा दें।" पूज्य श्री ने तो अन्य बातों में सामने पक्ष की तरफ चाहे जैसा भी जोश उत्तेजना आवेश पैदा हो ऐसा प्रकट होने पर भी मूल बात सैद्धान्तिक रूप में पकड़कर रखी कि ये शास्त्र पाठ हैं । इनसे स्पष्ट रीति से मूर्तिपूजा प्रमाणित होती है। इस सम्बन्ध में क्या करना है ? इन शास्त्र पाठों ४२
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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