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________________ शासन में महत्वपूर्ण अंग होने पर भी जिन शासन के प्रति श्रद्धा सबसे अधिक महत्व की है । "इस सम्बन्ध में महानिशोष यदि सूत्रों का सचोट उदाहरणों से श्रोताओंों के सामने व्यवस्थित रूप से कहा । परिरणाम स्वरूप स्थानकवासा तथा त्रिस्तुनिक मतवालों मे खलबलाहाट प्रारम्भ हो गई । पूज्य श्री ने व्याख्यान पीठ से स्पष्ट घोषणा की कि " जिन जिन जिज्ञासुनों को मेरे वचनों में संशय अथवा शंका उपजें कि वो मेरी बातों की प्रमाणिकता में खातरी करनी हो वे दोपहर दो बजे पूर्व मे ही समय निर्धारित कर अपने पक्ष के नेता श्रावकों को साथ लेकर जिज्ञासु भाव से आमने सामने मिलकर आश्वस्त हो सकते हैं 1,, "आवश्यकता पड़ेतो वे पक्ष जानकार प्रमुख अथवा पक्ष नायकों के साथ खुले में शास्त्रपाठों लेन-देन पूर्वक सत्य बात को प्रकट करने की मेरी तैयारी है" । इस बात पर स्थानकवासी अपने साधु महाराज के पास से तर्कों तथा शास्त्रपाठों के जत्थों को लेकर बहुधा दोपहर में आने लगे । पूज्य श्री ने स्थानकवासीयों को मान्य बत्तीस श्रागमनों के ही पाठों को निकालकर बताया तथा दलीलों में एकांगीपन प्रबल तर्कों द्वारा समझाकर आने वाले स्थूलबुद्धि वाले श्रावकों के हृदय में छेद कर दिये। अधिक में पूज्य श्री के सम्पर्क आये कितने ही जिज्ञासु श्रावक वास्तव में अन्तर की ४१
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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