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को मिथ्या ठहराना ? अगर इनके कोई मजबूत प्रमारण तुम्हारे पास हों तो प्रकट करो।"
अन्नतः स्थानकवासी पक्ष में जबरदस्त उहापोह मच गई । बाहर गांव से भी उस पक्ष के नेता आकर अपनी. अपनी गाड़ी तिरछी बातें प्रकट कर पूज्य श्री को तर्को में उलझाने लगे परन्तु पूज्य श्री तो शास्त्र के पत्रों को हाथ मैं रखकर ' इस सम्बन्ध में क्या कहना है ?'' अन्य सब बातें बाद में।' इस प्रकार मूल बात पर मजबूती से चिपके रहे । परिणाम स्वरूप भद्रिक परिणामी जनता का बड़ा वर्ग सत्य तत्व से परिचित हुआ तथा पूज्य श्री को निश्रा में शासन की तात्विक भूमिका के समीप पाने में उमंगित हुए । परन्तु कतिपय जड़-प्रकृति के वैसे ही मिथ्याभिनिवेश वालों ने वातावरण बहुत कलुषित कर डाला । अतः पूज्य श्री ने बाद में इस बात पर पर्दा डाल दिया को कोई जिज्ञासा से पूछने आवे तो चर्चा हो अन्यथा उसके बिना असत्य बात की चर्चा ही छोड़ दी । इस अवधि में श्रावण महिने में श्री नेमीनाथ प्रभु के जन्म कल्याणक प्रसंग में श्री वीतराग पर.. मात्मा की भक्ति दिल उदात्त आशय से करनी तथा लौकिक देवों एवं लोकोत्तर देवों के बीच में क्या अन्तर है ? इस प्रसंग में जिन शासन की मर्यादाओं का वर्णन करने सम्यग दृष्टि देवों की आराधना में कैसा उच्च स्थान है ? उसकी
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