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शुद्धिपूर्वक विवेकी श्रानकों की भक्ति से वे. सु. 1 रतलाम पहुंच गये। उस समय रतलाम में शिथिलाचारी साधुओं की व्यक्तिगत प्राचार की शोथिलता का जोर कर रही ढंढकपंथी स्थानक मार्गी तथा काल गति के प्रभाव से मतभेद के जंजाल में सत्य की उलझाबट के नमूने स्वरुप हाल हो में प्रकटे हुए त्रिस्तुतिक मत के प्रवर्तक आ. श्री विजय राजेन्द्र सूरि म. के छटादार प्रवचनों की बहार तथा रोचक प्रवचन शैली से शास्त्रीय परम्परा अनुयायियों के लिए खूब हा निसंवादी गातावरण का सुजन हो गया था।
पू. शासन-प्रभानक मुनि पुंगव श्री झवेर सागर जी म. श्री कुछ ने दिन सर्वसाधारण धर्मोपदेश की धारा चला कर मूल परम्परा नाहक संवेगी-साधुओं के परिचयसम्पर्क के अभाग में घटी हुई श्रद्धा की बढ़ाने का प्रयत्न किया, साथसाथ पू. गच्छाधिपति ने जिस काम के लिए उन्हें भेजा है उस काम के लिए भूमिका को खोज में वातावरण बनाना प्रारम्भ किया।
श्रावकों में एक दूसरे गुथे हुए जाति के संबन्धों के कारण सत्य से चिपके रहने की क्षमता थोड़ी प्रतीत होतो थी। साथ ही ठीक प्रकार से समझ न होने से अज्ञान-दशा का अधकार भी श्रावकों के मानस में अधिक गहरे लगा। इसके उपरान्त पक्षी के दावपेच की खराब खेल भी समय बल से सैद्धान्तिक मतभेदों को विकृत करने में अधिक से प्रसारित थे। अधिक में स्थानक वासियों तथा त्रिस्तुतिक मतवालों