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साथ श्री नवपद जी को सर्वाधिक महत्व क्यों ? इस हेतु तात्विक रीति से उदाहरण दुष्टान्त समझाने में प्रावे ऐसा प्रतिदिन एक एक पद को अर्थ गम्भीर रहस्यात्मक व्याख्या प्रसारित की । जैन श्री संघ में संवेगी परम्परा वाले साधुओं की अल्प संख्या तथा विचरण को न्यूनता से सुषुप्त बन गई धर्म भावना को पर्वा धराज श्री पर्युषण महापर्व के मगल दिनों की तरह ही दैदिप्यमान किया।
चै. सु. 13 लगभग मालवा के श्री संघ की तरफ से रसलाम से पांच-छः श्रावक पूज्य श्री के विहार में कठिनाई न हो उस रीति से पूरी तैयारी कर साथ आये । पू. श्री ने गोधरा के श्री संघ का आग्रह चातुर्मास के लिए होते हुए भो पू. श्री गच्छाधिपति की आज्ञा के प्रमाण से मालवा तरफ जाने की बात प्रकट की तथा मालवा संघ के श्रावक लेने आये है , अतः रुकना शक्य नहीं है । यो जतलाकर विद 1 सांयकाल को विहार की घोषणा पूर्णिमा के व्याख्यान में की। पूज्य श्री ने विद 1 सांयकाल गोधरा शहर के बाहर मुकाम कर मंगल मुहुर्त देख लिया । मालवा से आये श्रावक भी रसोईया, काम करने वाले व्यक्तियों आदि की सुविधा लेकर आये थे अतः गाड़ी की व्यवस्था करके पूज्य श्री को संयम में अधिक दूषण न लगे, ऐसे विवेकपूर्वक भक्ति के लिए पैदल चल पड़े। पूज्य श्री भी गोधरा से दाहोद तथा दाहोद से रतलाम तक 100 मील के प्रदेश में बोहड़ जंगल, विकट पहाड़ आदि की विषमतावाले मार्ग पर यथाशक्ति संयम की