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________________ लिए बहुत आग्रह हुआ पर पूज्य श्री ने पू. गच्छाधिपति की आज्ञा से अभी तो मालवा प्रदेश की तरफ जा रहने की जानकारी दी । भविष्य में कभी इस क्षेत्र की स्पर्शना करने की भावना व्यक्त की और आगे किया । विहार प्रारम्भ लसुंदरा वालासिमोर, महेलोल, वेजलपुर होकर गोवरा चैत्र सु 2 के मंगल दिन पधारे । वहां के श्री संत्र ने पूज्य श्री को शाश्वती चैत्रीश्रोली की आराधना के सम्बन्ध में आग्रहभरी विनती की । पूज्य श्री ने योग्य अवसर जानकर स्वीकार करके स्थिरता को । पूज्य श्री की तात्विक देशना पद्धति से गोधरा का श्री संघ खूब प्रसन्न हुआ । घर बैठे गंगा आई समझकर खूब भावोल्लास के साथ श्री नवपद जी की आराधना की । सामुदायिक रीति से जिनेन्द्र भक्ति महोत्सव शान्ति स्नात्र प्रादि की भव्य तैयारी प्रायोजन के साथ करना प्रारम्भ किया । पूज्य श्री सलाह सूचना के अनुसार ग्रायबल को ओली की आराधना करने वालों के अन्तर वायणां पारणां नो दिनों कि अवधि में प्रतिदिन ठाठ से सामुदायिक विधि चौसठ प्रकारी पूजा, अन्तिम दिवस शान्ति स्नात्र इत्यादि भव्य कार्यक्रम का सूचन कर आराधक भव्य आत्माओं के धर्मोत्साह में अत्यधिक वर्धन किया । पू. श्री ने भी व्याख्यान में श्रीपाल - चरित्र के मुख्य प्रसंगो के रहस्यों का विवेचन के ३७
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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