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चैत्री झोली गोधरा में करने का विचार है । मालवा श्री संघ ने फिर से ज्ञान-पूजन कर वासक्षेप डलवाकर पूज्य श्री को शीघ्र ही मालवा की पधारने तरफ की विनती कर विदा ली। पूज्य श्री ने पू. गच्छाधिपति के साथ फिर विचार-विमर्श कर विहार की तैयारियाँ की । षूज्य गच्छाधिपति से वासक्षेप ले मंगलाचरण सुनकर दोनों शिष्यों के साथ विहार किया ।
सर्वप्रथम नरोड़ा जाकर गोड़ी पार्श्वनाथ प्रभु के दर्शन वंदन करके " शासन प्रभावना की शक्ति विकसे" शासन की वफादारीपूर्वक स्वयं की ज्ञान शक्तियों का लाभ शास्त्रीय विधि से जगत को दिया जा सके, आदि मंगल भावना करके जीती जागती मानती श्री पद्मावती देवी के स्थान के सामने भी शासन सेवा में सहयोग प्रदान करने की भावना पूर्वक नवकार महामंत्र का स्मरण कर भावोल्लासपूर्वक शुभ शकुन मिलाकर दहेगाम की तरफ विहार किया । वहां से बहिल प्रांतर सुबा होकर कपड़वंज पधारे ।
श्री संघ के आग्रह से फागरण चौमासा की आराधना वहीं की । मगनभाई भगत की हृदयरूपी भूमि में भविष्य में उनके कुल में उत्पन्न होने वाले पूज्य चरित्रनायक श्री के जीवन को विशिष्ट बना सके ऐसी शासनोपयोगी तत्वों का बीजारोपण किया। कपड़वंज के श्री संघ का चौमासे के
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