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की सेवा यही सबसे बड़ा कर्तव्य है । तुम्हारे जैसे शक्तिशाली व्याख्यान शक्ति वाले साधुओं को तो स्थान-2 पर घूमकर प्रभुशासन की विजय पताका फहरानी चाहिए । अब हम तो थके । मेरे साथ के साधू तुम्हारे जैसा कर सके ऐसा नहीं है । अतः पुण्यवान ! तुम्हारा मालवा तरफ जाकर विचरण करना अत्यावश्यक है " पूज्य श्री ने पू. गच्छाधिपति के शब्दों के पीछे की ध्वनि को पहचान तत्काल विनय से मस्तक झुकाकर, 'अाप फरमावो वह मुझे शिरोधार्य है। ऐसा कह पू. गच्छाधिपति के चरणों में वंदन करते रहे।
पू. गच्छाधिपति ने भी उसी समय वासक्षेप का कटोरा मगाकर सूरिमंत्र से वासभिमंत्रण करके पूज्य श्री के मस्तक पर उमंग भरा बासक्षेप डाला तथा आर्शीवाद दिया कि "शासन का डंका बजाना।” पूज्य श्री ने "तहत्ति' कहकर परम धन्यता का अनुभव किया।
पू गच्छाधिपति श्री को भी योग्य व्यक्ति को योग्य कार्य में नियोजित करने का परम संतोष हुआ। दोपहर में निर्धारित समय पर मालवा के श्री संघ के प्रमुखजन ने आर्य वदना की सुख-शाता पूछी । गत दिवस की विनती का विवरण पूछा । इतने पू. गच्छाधिपति ने पूज्य श्री को भी