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________________ बुलाकर पास बैठाया । श्रावकों को सम्बोधित करते हुए कहा "महापुरुषों ! आपकी विनती पर पूरी तरह सोचा गया है, जरूरत भी आपके प्रदेश में संवेगी- साधुयों के विहार की, हमारा फर्ज भी है कि विशिष्ट धर्मलाभ होता हो उस प्रदेश में जरूर विचरना चाहिए, किन्तु परिस्थितियों के कारण मैं उधर आ नहीं सकता ! मेरे साथ में साधु भी प्रायः वृद्ध हैं । वे इतनी दूर विहार करने में असमर्थ है, ज्ञानाभ्यास आदि के कारण वे इतनी दूर आना भी पंसद नहीं करते एवं आप जिस कार्य के लिए साधुयों को ले जाना चाहते हैं । उस काम के लिए तो ये महाराज ( पूज्य श्री की तरफ ऊँगली निर्देश किया) सब तरह से काबिल है, शास्त्र ज्ञान गहरा है, व्याख्यान शक्ति भी प्रभावशाली है, वाद विवाद में भी मजबूत है । सब तरह से आपके प्रदेश में शासन का जय जयकार करे ऐसे ये सुयोग्य महाराज है । मेरे खास माने हुए इने गिने शिष्यों में उनका स्थान ऊँचा है । इनकों मैं आपके प्रदेश में भेजने का सोचता हूं ।" यह सुनकर पू. गच्छाधिपति की जय बोलते हुए मालवा के श्रावकों ने फिर कहा कि " बावजी बड़ी कृपा की आपने ! हमारे लिए आपके भेजे हुए बाल या वृद्ध कोई मुनि श्री गौतम स्वामी जी के ३४
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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