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पू. श्री नेमी विजय जी म. तथा पू. श्री चंदन विजय जी म. दोनों वोले कि "हाँ ! यह बात सच्ची है श्रीमान ! मधुर निश्रा के लाभ को जताकर के आये रास्ते टूटने की कोई भी इच्छा करेगा ही नहीं । पू. गच्छाधिपति ने कहा कि "तुम सब पुण्यवान हो कि ऐसी विवेक बुद्धि तुम में परन्तु व्यक्ति से बढ़कर शासन बड़ो चोज है मेरो निश्रा के लाभ को सामने देखने बनिस्पत शासन का हित अधिक विचारना चाहिए । तब भी तुम्हारी मैं अवगणना नहीं करना मांगता। मुझे तो यह लगता है । झवेर सागर जी को पूछ देखें तो।
____ तीनों व्यक्तियों ने कहा कि-हाँ श्रीमान, यह उचित है। युवा है, पढ़पढ़ा कर अभी तैयार हुए हैं । व्याख्यान शैली भी उत्तम है । वाद-विवाद में किसी से दबे ऐसे नहीं है। इसी प्रकार शासन के ऐसे कामों उनका उत्साह भी अधिक है ।" पू. गच्छाधिपति ने अपने समुदाय के नायकों के विचार लेकर अपनी पसंदगी को इस प्रकार सर्वमान्य कराकर शास्त्री पद्धति का निष्पादन किया । प्रातः देरासर दर्शन करके आने पश्चात् पू. गच्छाधिपति ने वंदना करने आये श्री झवेर सागरजी म. को पू. गच्छाधिपति ने कहा कि, 'भाई ! थोड़ा बैठो । मुझे एक बात करनी है ।" पूज्य श्री तो खुश-खुश हो गये कि मेरा सौभाग्य चन्द्र बढ़ती कलाओं से उचित हुआ है कि पू. गच्छाधिपति जैसे महापुरुष मुझे