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साधुओं ने कहा कि "यापकी बात उचित है पर सुनने के अनुसार अभी मालवा में तीन थोय का नया पंथ निकालने वाले श्री राजेन्द्र सूरि का प्रभाव बहुत अधिक है । अतः केवल व्याख्यान दे या प्रतिक्रण करावे अथवा धर्म क्रिया करावे ऐसे साधु को वहां भेजने का कोई अर्थ नहीं । शास्त्रीय रीति से रचनात्मक शैली से शास्त्रीय प्ररूपरण इस तरीके से करें कि जिससे पाखंडियों के समस्त कुतर्क प्रशमित हो जाय । शायद आवश्यकता पड़े तो शास्त्रार्थ चर्चा वाद-विवाद में जिन शासन का डंका बजा सके ऐसे को भेजना आवश्यक है।
पूज्य नेम विजय जो म. ने कहा कि “साहब ! ऐसे तो ये मंगल वि. म. तथा मुनि श्री राज विजय जी म. तथा मुनि श्री ऋद्वि विजय जी म. अपने समुदाय में है। पू. चंदन विजय म. बोले कि बात तो बराबर है पर ये सब ही अवस्था वाले हैं । मालवा जैसे दूर देश में तनक शक्तिशाली तथा नवयुवा शक्ति वाला कोई जाय तो उत्तम रहेगा। पू. श्री मंगल विजय जी म. ने कहा कि “साहब ! सारी बात सत्य है लेकिन आपकी निश्रा में आगमिक ज्ञान तथा संयम की शिक्षा मिलती है अतः साहसिक गुरु-भक्ति से इतनी दूर कोई जाने को तैयार ही नहीं है । आप आज्ञा करेंगे तो कोई ना नहीं कहेगा । लेकिन अन्दर से मन संकोचायगा, मुआयेंगा।