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'साहब ! देश मनोहर मालवो !” श्रीपालरास में पू. श्री विनय वि. म. ने जिनके गुण गाये हैं, पर दुःख भेजन विक्रमादित्य नाम से जो मालवा प्रख्यात है, जो “मालवा को माँ का पेट" कहाता है वहां के जैनों को संवेगी साधुनों के दर्शन ही नहीं होते । पाखण्डी लोग चित्र-विचित्र तर्कों से मुग्ध जनता को धर्म मार्ग से विमुख कर रहे हैं । साहब ! कृपा कीजिये । कोई एक श्रेष्ठ व्याख्याता तथा शासन की प्रभावना त्यों ही धर्म को प्रकाशित कर सके ऐसे महात्मा को हमारे यहां भिजवाइये । अनेक वर्षों के भूखे प्यासे बैठे हैं ! यहां तो आपकी छत्र छाया में धर्म प्रेमी लोग पाँचों पक्वान भोजन कर रहे है पर हमें तो रोटी-तरकरी होगी तो भी चलेगा। तनिक कृपा करे !!! _ पू. गच्छाधिपति ने मालवा के श्री संघ के प्रमुखों की बात सुनकर कहा, "पूण्यवानों ! बात सच है ! क्या करूं ! मेरा शरीर अधिक काम दे सके ऐसा नहीं हैं। हमारा कर्तव्य है कि ऐसे प्रान्तों में विचरण कर प्रभु शासन की जानकारी लोगों को हो ऐसा प्रयत्न करना चाहिए । तुम्हारी बात पर अवश्य विचार करेंगे। आप लोग कल मिलें । पू.
चिन्तामणी पार्श्वनाथ प्रभु के जिनालय के पास पू. श्री मूलचन्द जी महाराज की गादी तौर पर कहाता सकल श्री संघ को धर्म-क्रिया का महत्वपूर्ण केन्द्र है।
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