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________________ सबको गुरु भाई अगर पू. गच्छाधिपति श्री के शिष्य के रूप में दीक्षित किया। तदुपरान्त पू. गच्छाधिपति को प्राज्ञा से सौराष्ट्र तरफ विहार किया। साणद, वीरमगाम, लींबड़ी, बढ़वारण, बारोद, आदि शहरों में जाकर शाश्वत गिरिराज श्री सिद्धाचल जी महातीर्थ की भावभारी यात्रा की। पू. गच्छाधिपति के गुरुभाई पू. सरलाश जी महाधुरन्धर, ज्ञान क्रियापात्र पू. मुनि श्री वृद्धि विजय जी (वृद्धिचन्द्र जी) महाराज की पावन निश्रा में भावनगर में चातुर्मास किया। चातुर्मास की अवधि में पू. श्री वृद्धिचन्द जी म. के विशाल अनुभव की मलाई तथा शासन की सूक्ष्मतम पहचान पूज्य श्री से संयोजित कर अपनी ज्ञान गरिमा को बढ़ाया । अनेक धर्म कार्यों से चातुर्मास सानन्द सम्पूर्ण कर पीछे लौटते वल्लभीपुर (वला) में पू. श्री वृद्धिचन्द जी म. के सहवास से वैरागी बने परन्तु योग्य निश्रा की खोज में भटक रहे पुण्यात्मा श्री केशरी चन्द जी भाई ने अचानक पूज्य श्री की प्रौढ़ आगमिक देशना तथा सचोट रदियावली प्रतिपादन शैली के साथ शुद्ध संयमी जीवन से प्रभावित सुषुप्त बनी वैराग्य भावना प्रदीप्त हुई । कुटुम्बियों को समझा कर भी श्री संघ के सहकार से पो. सु. 10 के मंगलमय दिन श्री देर्वाद्ध गणी क्षमाश्रमण भगवंत द्वारा की गई छठे आगम के वाचन की पुण्य भूमि में पचपन वर्ष की २६
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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