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पूज्य चरित्र नायक श्री के पिता जी गांधी मगनभाई, भाईचन्द (भगत) श्रावक जीवन की क्रियाओं को आचरण में अावश्यक तत्व दृष्टि तथा विवेक बुद्धि का महत्व पूज्य श्री के देशना से समझ सके तथा अन्तर में ऐसा प्रकट हुआ. जाने महा मूल्यवान खजाना पड़ा मिला हो ऐसे ही पूज्य श्री के व्याख्यानों से प्रानन्दविभोर होकर स्वयं के जीवन को धर्म क्रिया के चौखटे में ढालने की धरेडमा तत्वदृष्टि विवेक बुद्धि के मिश्रण से उत्तम धर्मक्रिया द्वारा सुन्दर जीवन जीने को रूप-रेखा पड़ने लगे। __इस राति से स्वयं के जीवन को लोक परम्परा में मात्र क्रिया करके संतोष मानने वाले चालू परिपाटी से बाहर निकालकर जीवन को ज्ञानियों की आज्ञानुसार संस्कारों को संयम के साथ कर्म-निर्झर के ध्येय आदर्श तरफ मोड़ने में भाग्यशाली बन सके।
उसमें पूज्य श्री का अधिक आभार युक्त उपकार मानते रहें, पधारें । भगनभाई भगत पूज्य श्री के सहवास एवं व्याख्यान से प्राप्त तत्वदृष्टि को अविलम्ब अहमदाबाद जाकर घंटों तक धर्म चर्चा ज्ञान गोष्ठी के रूप में विविध जिज्ञासुनों को स्पष्ट कराकर विकसित करते रहे।
( सम्पूर्ण प्रकरण में जहां-जहां “पूज्य श्री" शब्द भावे वहां यू. मुनि श्री झवेर सागर जी महाराज समझना।)