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________________ * पूज्य श्री की तात्विक तथा बालजीवों को समझाया ऐसी रसभरी व्याख्यान शैली से धर्म-प्रेमी जनता पर्वाधिराज के दिनों में जैसे उपाश्रय में आती हो इतनी बड़ी संख्या में पाने लगी। पूज्य श्री बोधगम्य रीति से तर्कबद्ध उदाहरण, दलील, दृष्टान्तो आगमिक पदार्थों की खूब सरस मूक्ष्म विवेचना करते । परिणामतः श्री संघ में अटूट धर्मोत्साह प्रकटा । * ( प्राप्त हुए ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर वि. सं. 1935 आश्विन सुद 8 राजनगर-अहमदाबाद में पू. पं. श्री मरिण विजय जी म. दादा का तथा वि. सं. 1938 में पूज्य श्री बुट्टे राय जी म. का स्वर्गवास निश्चित हुआ हो तो पू. श्री मूलचंद जी म. गनच्छाधिपति वि. सं. 1938 के पहले नहीं थे। परन्तु पूर्वोक्त दोनों ही पूज्य पुरुषों ने शासन व्याख्या सम्भाल सके । अनुभवी पूण्य प्रभाव तथा सुनेह-कुशलता आदि गुगों से पू. श्री मूलचंद जी को सम्पूर्ण संघ-समुदाय की व्यवस्था का भार वि. सं. 1912 में दीक्षा के तीसर ही वर्ष दोनों पू. श्रीनों ने स्वयं ही सौंपा हो ऐसा जानने को मिलता है। अतः इसा अर्थ में यहां पू. मुलचंद जी म. को गच्छाधिपति शब्द से सम्बोधित किया है । प्रागे भी इसी प्रकार समझना चाहिए। २२
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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