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________________ के रहस्य को परखने की सभी गीतार्थता एकत्रित कर ली । इतना ही नहीं पर विचारणा के विरोधाभास के समय पूज्य श्री शिक्षा-दीक्षा शास्त्रानुकूल तथा टकसाली मानी जाने लगी । इस अवधि में वि. सं. 1916 से माह विद 7 के दिन स्वयं के जीवनोपकारी दीक्षा दाता गुरुदेव गौतम सागर जी म. के 72 वर्ष की आयु में राजनगर - अहमदाबाद नागोरो शाला के उपाश्रय में कालधर्म होने से स्वयं पू. मूलचंद जी म. की पावनकारिणी निश्रा को जीवन के अन्तिम छोर तक निभा सके ऐमी रोति उन्होंने अंगीकार की । पू. श्री पू. मूलचंद जी म. की निश्रा का लाभ लेने के साथ-साथ बीच के समय में आस-पास प्रदेशों में स्वल्पावधि के लिए विहार कर आते तथा संयम को जयरणाओं का विशिष्ट पालन भी करते थे । वि. सं. 1925 में पू. गच्छाधिपति श्री के पास कपड़वंज का श्री संघ शेषकाल में ग्रष्टान्हिका महोत्सव के प्रसंग हेतु विनती करने आये हुए के साथ पू. गच्छाधिपति ने पू. श्री झवेर चन्द जी महाराज को भेजा। कपड़वंज के श्री संघ ने उमंग भरे बहुत ठाठ से सामैयापूर्वक प्रवेश कलात्मक प्रद्भुत प्रत्यधिक मान किया । प्रथम दिन के व्याख्यान में श्रीफलरुपैया से प्रभावना की । २१
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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