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________________ की पद्धति हस्तगत की । थ-साथ नंदीसूत्र तथा अनुयोग द्वार सूत्र की वाचना भी प्राप्त कर आगमाभ्यास के लिए पीठिका मजबूत तरीके से इन दो चातुर्मास में तैयार कर ली। इस प्रकार पू गुरुदेव श्री की शासन-प्रभावना की अनेक प्रवृतियों को लक्ष्य में रखकर अपने आपको अधिक शासनोपयोगी बनाने के लिए आवश्यक अागमाभ्यास हेतु पू. गुरुदेव श्री के सम्मति से पू. श्री दयाविमल जी म. तथा पू. श्री मणिविजय जो म. के पास श्री मूलचन्द जो म. की निश्रा को स्वीकार करके आगमों केगूढ पदार्थों को ग्रहण प्रासेवन शिक्षा द्वारा प्राप्त करने के लिए भगीरथ प्रयत्न प्रारम्भ किया तथा वर्षों तक गुरुकुलवास के सुमधुर फलस्वरूप आगमनों के गूढ तत्वों की जानकारी तथा विशुद्ध संयमी जीवन के मूल तत्वों की सफल जानकारी प्राप्त करने में पूज्य श्री सौभाग्यशाली बने । उस समय सवेगी साधुओं में प्रौढ़, तेजस्वी, संयममूर्ति तथा अागमी रहस्य के जानकार की तरह पू. श्री इयाविमल जी म. तथा पू. पं. श्री मणि विजय जी म. दादा की ख्याति बहुत थी तथा पू. श्री मूलचन्द्र जी गणि भगवंत का पूज्य प्रताप भी सुलभ था । सम्पूर्ण श्री संघ में उनके वचनों को ग्रहण करने की तैयारी थी।
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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