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________________ गुरु महाराज की निश्रा में गुजरात के छोटे-बड़े गांवों में विचरण करते समय पूज्य श्री व्याख्यान पटुता तथा प्रतिभाशाली शब्द-शैली से अनेक भव्य आत्माओं के हृदय में अद्भुत धर्म प्रेरणा उपजाने में समर्थ हुए थे। दीओपरान्त तीसरे वर्ष अागमाभ्यास के लिए पूर्व भूमिका रूप साधन ग्रन्थों, शब्दशास्त्र व्याकरण तथा तर्क शास्त्र पर अद्वितीय प्रभुत्व प्राप्त कर वि. स. 1915 के राजनगर-अहमदाबाद के चातुर्मास में उस समय के तथा गच्छाधिपति संवेगी शाखा के महाधुरन्धर प्रभावक पूज्य तपस्वी श्री बुद्धि विजय जो महाराज ( बुटेराय जी म.) के शिष्यरत्न, ज्ञान, दर्शन चरित्र, तप, शील, संयमादि अनेक गुणों से विभूषित प्रोड़ प्रतिभाशालो पू. मुक्तिविजय जी म. (मूलचंद जो. म.) गगी के चरणों में विनय भाव पूर्वक बैठकर वे दसवैकालिक सूत्र की हरिभद्रीय टीका के पढ़ने से आगम-अभ्यास का प्रारम्भ किया । अपार समुद्र जैसे श्री आवश्यक सूत्र के वांचन के लिए सं. 1916 का चातुर्मास भी अहमदाबाद में किया, दो वर्ष लगातार गुरुनिश्रा में विनतीभाव से रह कर श्री आवश्यक सूत्र हारिभद्रीय टीका तथा श्री विशेषावश्यक भास्य की मलधारी श्री हेमचन्द्र सूरी म. की टीका में गोता लगाकर उसके रहस्यों को प्रात्मसात करके समस्त प्रागमों को पढ़ने १८
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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