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इसके उपरान्त भी झवेर सागर जी महाराज ने अपने गुरु बन्धुओं के साथ सौमनस्य भाव त्यों ही यथोंचित विनय मर्यादा का व्यवहार कर सामुदायिक-जीवन के आदर्श संस्कारों को जीवन में स्थापित किया।
अनेक अवसरों पर पू. गुरुदेव श्री के शासनोपयोगा कार्य में भी यथायोग्य सहकार देकर शासन हितकर प्रांतरिक अनुभव जुटाने में उद्यत रहे ।
पूज्य श्री साधु जीवन की मर्यादा में तथा क्रियाकांड की स्फूर्ति से सम्पादन में खूब सजग थे । इसी प्रकार उन श्री ने जीवन में तत्व-दृष्टि तथा विवेक पूर्ण प्रवृति के सुमेल से दिन-प्रतिदिन वैराग्य के रंग को दृढ़तर बना लिया था, वे शुद्ध चरित्र की सुगन्ध से स्वसमुदाय के अतिरिक्त दूसरे भी अनेक धर्मप्रेमियों के मन में शुद्ध-साधुता के प्रतीकरूप बन गये।
त्याग-तप सुमेल वाले साधु जीवन में श्री पूर्व के महापुरुषों के चरणानुरागी बने थे। अनेक धर्म के कार्यों को शासनानुसारी दूरदृष्टि से सफलतायुवत उन्होंने बनाकर अनेक पुण्यवान धर्मप्रेमी-आत्माओं के आकर्षण केन्द्ररूप प्रकट हुए थे।