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________________ लिए आवश्यक शब्दज्ञान की भूमिका परिपक्व करने के लिए “सर्वसामेव विद्यानां मुखं व्याकरणं स्मृतम्" सूक्ति के प्रमाणनुसार पदभंजन, व्युत्पत्ति तथा सचोट भाषा-ज्ञान प्राप्त करने के सारस्वत-व्याकरण का अभ्यास प्रारम्भ किया। ___ बहुत शीघ्रता से पूर्वाध-उत्तरार्ध दोनो के मूलपाठ को कंठस्थ कर उसके अर्थ के विवेचन को भी तीव्र बुद्धि के सफल सहयोग से प्राप्त कर साहित्य शास्त्र में अवगाह्न कर (डुबकीलगाकर) तर्कशास्त्र, न्यायशास्त्र की कठिन परिभाषाओं को भी गुरुकृपा से हस्तामलकवा कर लिया। पू. श्री झवेर सागर जी म. श्री को गुरु कृपा के बल, विनय तथा प्राज्ञाकारिता से मिला हा पूर्व-जन्म की आरधाना से बल प्राप्त कर ज्ञान के तीव्र क्षयोपसम के बल से एक बार में पढ़ा हुअा या सुना हुआस्मृतिपथ पर सावधानी पूर्वक अंकित हो जाता । धारणा शक्ति तथा स्मृति-शक्ति अजोड़ थी । प्राप्त किये ज्ञान को स्थिर करने का इच्छा भो अद्भुत थी। __संध्या को प्रतिक्रमण के पश्चात् रात्रि में ठेठ देर रात ग्यारह बजे तक तथा सवेरे जल्दी उठकर चार बजे कंठस्थ श्लोकों की आवृति पुनरावर्तन करने को उद्यत रहते । ___ यह सब देखकर भविष्य में शासन का यह अजोड़ प्रभावक बनेगा यह धारणा मूर्तिमंत होकर इस कल्पनाचित्र से श्री पू. गौतम सागर जी महाराज का हृदय आन्नदविभोर बना रहता था।
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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