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________________ उसी तरह द्वितीय शिष्य पू. मुनि गौतम सागर जी म. भी.. अजोड़ व्याख्यान व ला तथा वीरता से शासन प्रभावना अद्भूत रीति से कर रहे थे। उनमें शासन के विजयंत प्रभाव के बल से ही संघ के पूण्य में पू. झवेर सागर जी म. जैसे अद्वितीय, अजोड़ यात्मशक्ति वाले शिश्य को प्राप्त कर उनकी शासनोद्योत की प्रवृत्ति में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। दीक्षा हुई तब से हो द्वितीया के चन्द्रमा की कलाओं के समान पूर्वज की विशिष्ठ अाराधना के बल से श्री गुरुदेव की निष्ठा में आवश्यक क्रियाओं के अध्ययन, साथ ही सं म की सूक्ष्मतर जयणा के सम्बन्ध में सावधानीपूर्वक श्री झवेर सागर जी महाराज ने पू. गुरुदेव श्री के संकेत मात्र से गम्भीयुक्त समझ के साथ निपुणता को प्राप्त कर लिया । अधिक में तात्विक दृष्टि के विकास को प्राप्त कर संयम की क्रियाओं, ज्ञानाभ्यास तथा चार प्रकरण, तीन भाव्य, छःकर्मग्रन्थ श्री तत्वार्थ सूत्र आदि का सागोपांग अभ्यास कर लिया। अधिक से हृदय में धड़क रहे विशिष्ट शीसनानुराग को मूर्त रूप प्रदान करना उपयोगी हो सके ऐसा शुभ प्राशय से पू. गुरुदेव श्री के निर्देशन प्रमाण से आगमाभ्यास के
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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