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________________ पश्चात पू. मुनि श्री गौतम सागर जी म. ने अग्रगण्य श्रावकों, नगरसेठ इत्यादि को ठोक समय पर सारी बात कही । उन्होंने भी उगती उम्र में दोक्षित होने वाले व्यक्ति के व्यवहारिक रूप में परीक्षा जांच कर चढ़ती युवावस्था में प्रबलगुण अनुराग भरा अभिवादन किया। कतिपय पिछले श्रावकों ने प्रश्न किया कि इसके कुटुम्बी क्यों नहीं पाये ? पर विवेकी श्रावकों में पू. महाराज श्री पास से पूरी जानकारी किये हुए होने से भाई सोहे की बेड़ियों काटना सरल है । लेकिन ममता के कच्चे सूत्र के बन्धन शीघ्र नहीं टूटते । इतने दिन से यह भाई यहां है । यदि वास्तव में कुटुम्बियों का विरोध होता तो उसे उठा क्यों न ले गये होते । इसलिए इस मोह की गहरी छाया के नीचे रहने वालों को ऐसी स्थिति होतो है"। आदि समझाकर मन को संतुष्ट किया। - पू गुरु श्री का सम्पति से श्री संभवनाथ प्रभु के दहरे अष्ठान्हिका-महोत्सव तथा दीक्षार्थी को भव्य वस्त्रालंकारों से सुसज्जित कर दोक्षा के अधिक सम्मानार्थ बना ले (वायणा) जिमाने प्रारम्भ किये। संवेगी साधुत्रों की परम्परायें यह पहली छोटी आयु की दीक्षा है । ऐसा जानकर सम्पूर्ण राजनगर में अत्यधिक धर्मोत्साह जारी रहा।
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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