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योग्य दिवस निर्धारित कर लेंऊ और तदुपरान्त यहां के प्रमुख नेताओं से बात कर देखूँ । यदि वे सहमत हो जाएँ तो शासन प्रभावना पूर्वक तेरो दीक्षा हो तो तुझे क्या हैं ?
भवेरचन्द तो पू. गुरुदेव श्री की पुरोगामी दूरदृष्टि, शास्त्रानुसारिता तथा व्यवहार कुशलता देखकर मन ही मन गुरुदेव श्री पर न्यौछावर हो गया ।
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पू. मुनि श्री गौतम सागर जी म. को माघ सु. 2 दिन पचग-शुद्धि योगबल तथा चन्द्रबल वाले दिन मुहूर्त की दृष्टि से देखव र माग सु. 11 का दिन सर्वश्रेष्ठ लगा ।
सोने में सुगन्ध की तरह जैसे अठारवें तार्थं कर श्री अरहनाथ प्रभु तथा उनीसवें तार्थकर श्री मल्लिनाथ प्रभु को दीक्षा दिवस के पश्चात डेढ़ सौ तथा तीन सौ कल्याणक की बाररारूप महापवित्र मौन एकादशी रूप गिना जाता है । माघ सु. 11 का दिन मुनि पद दिलाने के लिए सर्वोतम धारकर दीक्षा के मंगल मुहूर्त के रूप में निर्धारित किया ।
झवेरचन्द भी इस बात को जानकर अपने संयम जीवन को सरलता के लिए उत्कृष्ट कोटि का मंगल मुहूर्त जो गुरु महाराज ने निश्चित किया उसे "गुरु आज्ञा प्रमाण ' मानकर अपना मुँह बंधवा लिया ।
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