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________________ पूज्य गच्छधिपति श्री ने पर्युषण के पश्चात् शारीरिक अशक्ति के कारण थोडे दिन तलहटी जाने का निरस्त रखा। परन्तु एक समय भादवा विद में बहिभुमि से आते अज्ञात या अन्य किसी कारण से बाये पांव के पीछे भाग में सोजिस जैसा हो गया वेदना खूब होने लगी। परिणामतः बहिभुमि जाने का भी बन्द हो गया। दीपचन्द सेठ ने योग्य, अनुभवी, कुल वैद्यों को बुलाकर काफी योग्य उपचार किये परन्तु पाराम नहीं हुआ। पू श्री झवेर सागर जी म. पू. श्री नेमविजय जी म. तथा पू. श्री कुशल विजय जी म. पू. गच्छाधिपति श्री की सेवा में खड़े पाँव रहने लगे। ____ अधूरे में पूरा'' आश्विन सु. 12 पू. गच्छाधिपति श्री को ज्वर प्रारंभ हो गया जिसके प्रारंभिक उपचार करने पर भी हड्डियां गला दे ऐसा बुखार ने गहरा प्रभाव धारण किया। परिणामस्वरुप खुराक घट गयो, अशक्ति का प्रमाण बढ़ गया। साधुनों तथा श्रावकों को चिंतातुरता होने लगी। पू. गच्छाधिपति श्री “स्व-शता सहने हिगुणों महान् ” इस वाक्य को बीजमंत्र बनाकर सबको कहते कि : भाई ! पेढ़ी .. चालु हो तब जब लेनदार अपना लेना पूरा करने आते हैं । इस मौके पर साहूकार को तो मुह चमकोडे बिना भी चुका देने की आवश्यकता है।" आदि कहकर सबको दवा आदि उपचार के लिये इन्कार कर देने पर भी २३३
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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