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शासन-गगन में चमक रहे कि जिनकी अद्धितीय सयम-प्रभाज्ञानप्रभा तथा चरित्र प्रभा से अहमदाबाद के धनसमृद्ध नगर सेठ के वंशज श्री शासन की अद्धितीय महिमा का ' भावुक भक्त" बनकर स्व-परकल्याणकारी जोवन जी सके थे।
उन श्री मयासागर जी म. के दो शिष्य थे :
(1) उत्कृष्ट क्रियापात्र शुद्ध संवेगो पू. नेम सागर जी म. (2) अजोड़ विद्धान प्रखर व्याख्याता पू. मुनि श्री गौतम सागर जी म./पू. मुनि श्री गौतम सागर जी म श्रमण संस्था के कालबल से धूमिल पड़े गौरव को दैदीप्य करते थे । वे विविध शास्त्रों के अभ्यासी थे। .
उसी प्रकार समयचक्र के परिवर्तन के बल पर शिथिलाचारी बने श्रमणों के व्यक्तिगत जीवन से मुग्ध जीव प्रभुशासन को पहचान से वंचित न रहे इस उद्देश्य से क्रियोद्धार के द्वारा शुद्ध मार्ग को स्थिर रखने में जिस संवेगी परम्परा का सर्जन उस समय के दीर्धदर्शी महापुरूषों ने किया था जिसमें पीत वस्त्र रखकर उत्तराधिकार में प्राप्त ज्ञान को कितनी ही महत्त्व की बातों को गौरग करके भी चरित्र के मार्ग को अक्षुण्ण अबाध रुप में खड़ा रखा था ।
उस परम्परा के समस्त प्रयत्नों को प्रोत्साहन प्रदान करने विविध प्रदेशों में विचरण करके शास्त्रों की जय जय