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________________ बात अधिक स्पष्ट रीति से समझाकर श्री श्राद्ध-दिन कृत्य सूत्र तथा भावनाधिकार से सुदर्शन चरित्र प्रारंभ किया । श्रावकों के दैनिक कर्तव्यों का अधिक स्पष्ट ध्यान रहे इस प्रकार की निस्तारण सहित पूज्य श्री ने व्याख्यान में प्रचार करना प्रारंभ किया जिससे श्रावक जीवन में उपयोगी प्रधानता श्रोताओं के मानस में घुसने लगी। परिणामस्वरुप अंधेरे में चुल्हा जलाना, बिना छाने पानी, जीव यत्न का अभाव, हरे फुल तथा त्रसजीवों की होती अ-जयणा बासी, विदल, रात्रिभोजन, कदमूल आदि अभक्ष्य पदार्थ आदि श्रावक जीवन को अशोभनीय अनेक वस्तु विषय पूज्य श्री की प्रेरणा से श्रावकों के घर से दूर होने लगी। श्रा सु. 5 से 10 तक पंचरंगीतप प्रारंभ हुआ जिसमें उपवास वाले पच्चीस, चार उपवास वाले पचास, तीन उपवास वाले सौ, दो उपवास वाले दो सौ तथा एक उपवास वाले चारों कुल मिलाकर 775 अाराधकों ने चार गतिका नाश करके पंचमी गति मोक्ष प्राप्त करने के लिए विशिष्ट आराधना "काउसग्ग", "मासखमण", साविया तथा नवकार वाली के साथ भावोल्लास पूर्वक की। आश्विन सुद तृतीया को चौगान के देहरासर शहर यात्रा का कार्यक्रम पूरा हुआ उस दिन व्याख्यान में आश्विन सु.6 से प्रारम्भ होती । शाश्वत श्री नवपद जी की अोली की सामुदा २१७
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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