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________________ पूज्य श्री की निश्रा में सम्पन्न की । इसी चैत्री प्रोली दरम्यान उदयपुर श्री संघ तथा चौगान के देहरासरों के व्यवस्थापकों का पत्र प्राया जिसमें परस्पर मतभेद के कारण से वर्ग-विद्रोह पड़ गया तथा वैमनस्य की बात प्रकट हो गयी । तथा दोनों पक्ष पूज्य श्री को अवश्यमेव उदयपुर पधार कर वैमनस्य दूर करने की विनती की । चैत्र विद तीज के दिन दोनों पक्ष के अग्रगण्य पूज्य श्री के उदयपुर पधार कर धर्मस्थानों की व्यवस्था में पड़ी उलझन के सुलझाने के लिए पधारने की प्रग्रहभरी विनती की । इसलिए उदयपुर की धार्मिक-सम्पत्तियों को व्यवस्था तंत्र में उत्पन्न खींचतान के परिणाम से धर्मस्थान में अव्यवस्था न हो। और भी उदयपुर श्रीसंघ के तथा सामने के पक्ष में चौगान के कार्यकारियों द्वारा खास आग्रह तथा चौगान के देहरासर की स्थापना सागर - शाखीय मुनिवरों के हाथ से होने से उसकी अव्यवस्था निवारण करने की स्वयम् की जवाबदारी आदि के कारणों को विचार कर इच्छा नहीं होने पर भी परिस्थितिवश पूज्य श्री ने उदयपुर तरफ विहार का विचार रखा । चैत्र विद 10 के दिन घाणेराव से कुमलमेर, रोछेड़ आमेंट होकर राजनगर दयालशाह के किले, अदबुद जी होकर २१५
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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