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मोयणी प्रतिष्ठा के सम्बन्ध में पू. गच्छाधिपति श्री की अनिच्छा जानकर उदयपुर श्री संघ को प्रसन्न करने वाला प्रयत्न किया कि- "चलो ! तुम सब लोगों का खूब आग्रह है तो गुजरात तरफ नहीं जाऊँ।
बाद में धनजी संघवी के मन में हुआ कि- पूज्य श्री राणकपुर तरफ पधारते हैं तो छरी पालते संघ की मेरो भावना भी पुरी हो जायगी" यो विचार कर पूज्य श्री को विनती की कि- " साहेब ! मुझे छरी पालना करते संघ निकलने का भावना आप जब भीलवाड़ा से केशरियाजी संघ लेकर यहां पधारे तब से ही प्रकटी है । आपकी निश्रा में वह संघ निकाल कर जीवन को धन्य बनावूऐसा वासक्षेप डालिये तथा शुभ मुहूर्त दिखाने की कृपा कीजिये ।”
धनजी संघवी संघ के अग्रगण्यों को लेकर पो. सु. 7 को पूज्य श्री के पास संघ निकालने की भावना को साकार करने हेतु संघ प्रयाण का मुहूर्त पूछने आये। पूज्य श्री शुभ स्वरोदय परखकर धनजी सेठ के नाम से बराबर खोजकर माघ सु. 5 का मुहूर्त दोपहर 3-37 प्रयाण-मुहूर्त तथा माघ सु. 13 को माल का मुहूर्त दिया। मनजी सिंघवी की धर्मभावना तथा आग्रह को देखते हुए पूज्य श्री की निश्रा में श्री संघ देवाली, गोगूदाँ, राणकपुर, घाणेराव, सादड़ी होता मुछाला महावीर जी पहुंचा। वहाँ चैत्रो अोलोकी भव्य आराधना