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________________ स्टेट यात्री कर नहीं डालेंगे । अन्य कोई प्रयोग्य दरम्यान गिरी स्टेट की तरफ से नहीं होनी चाहिए ।" इस करार की क्रियान्विती ता. 1-4-1886 सं. 1942 के चैत्र विद 5 से प्रारम्भ करने का निश्चय किया गया । इसके अनुवर्तन में चै. वि. 10 के लगभग अहमदाबाद से निम्नानुसार पत्र भी प्राया- "श्रो उदयपुर मध्ये मुनिराज श्री झवेर सागर जी अहमदाबाद से लि. दलपताई गुई की वंदना 1008 बार पढ़े । अन्य श्री वरधीचन्द जी ने भावनगर मध्ये टीप सिद्धाचलजी की प्रारम्भ की, रु. 20 हजार होंगे । गंभीर विजेजी ने घोघा बंदर में की, श्राप उदयपुर में हो अतः श्रेष्ठ टीप हो ऐसा उद्यम करना । " सही लि. द. स्वयं चैत्र (विद ) 8 ता. 4-4-86 ऐसा ही एक अन्य पत्र पुराने संग्रह में से मिला है निम्मानुसार है - " श्री उदयपुर मध्ये महाराजसाहेब श्री झवेर सागर जी श्री अहमदाबाद से लि. दलपत भाई, भगुभाई की वंदना 1008 बार पढ़ना - अन्य सिद्धाचल जी की टीप के लिये अपनी तरफ के भाइयों द्वारा पत्र बंद कर भेजा है सो श्राप भली प्रकार उपदेश करके अच्छी टीप हो ऐसा करना, ऐसा प्रापका भरोसा है । इस काम में रकम उत्तम स्थान पर जायगी, ऐसा आप समझाकर कहोगे तो तीरथ का काम २०१
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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