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करने हेतु चातुर्मास की आग्रह भरी विनती की। पूज्य श्री साधु जीवन की मर्यादानों को ध्यान में रखी इसी प्रकार "अतिपरिचयादवज्ञा " जैसा न हो इसलिए चातुर्मास की अनिच्छा दिखाई |
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इसके बाद भी श्री संघ के प्रमुख व्यक्तियों ने एक बाद एक देहरासर की व्यवस्थातंत्र की गुत्थियों को पूज्य श्री के सामने प्रस्तुत करना प्रारम्भ किया । इसमें मुख्य रूप से चौगान के देहरासर जो कि सागर शास्त्रीय मुनिवरों के उपदेश से बंधा - स्थापित हुए की व्यवस्था के लिये पूज्य श्री सम्मुख समस्या डाली । इसलिए पूज्य श्री को संयोगवश चैत्री प्रोली के पश्चात भी स्थिरता करनी पड़ी ।
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इस बीच में चैत्र विद तीज के लगभग पालीताणा तथा भावनगर से एवं इसी प्रकार आ. क. पेढ़ी अहमदाबाद से श्री सिद्धगिरि के प्रश्न के सम्बन्ध में समाचार मिले कि" पालीताणा स्टेट के साथ हुए विवाद के हल के रूप में बंबई गवर्नर के पास जैन श्री संघ द्वारा की गयी अपील को काठियावाड़ के पोलिटिकल एजेण्ट जे. डब्ल्यू. वोटसन (J. W. WOTSON) की मध्यस्थता के कारण 8-3-1886 के दिन समस्या के हल रूप में चौथा करार हुआ । उस करार में यों ठहराया गया कि - " जैन श्री संघ पालीताणा दरबार को 15,000 /- रुपया उदरत दे देवे । पालीताणा
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