SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में चेत्री अोली की सामूहिक आराधना हो यह चाहते हैं । आपको जरूर पधारना ही पड़ेगा" आदि-पूज्य श्री ने बहुत प्रकार से आगेवानों को समझाया, परन्तु अन्ततः चैत्री अोली के लिये हाँ करनी ही पड़ी तथा विद 11 उदयपुर तरफ श्रावकों ने विहार कराया। विहार में पांव पैदल चलते अनेक श्रावक गुरु भक्ति में रहे। फा. वि. 14 प्रातः उदयपुर में प्रवेश हुआ। व्याख्यान में शाश्वत नवपदजी की अोली की प्राराधना के महत्व को पूज्य श्री ने खूब सरस तरीके से समझाना प्रारम्भ किया। पूज्य श्री की निथा में चैत्री अोली की आराधना प्रायः नहीं हुई थी। इससे खूब उमंग उल्लास से उदयपुर के श्री संध में पूज्य श्री की बात को ग्रहण कर विशाल संख्या में पाराधकों ने तैयारी की। शा. दीपचन्द जी कोठारी ने नौ ही दिन के प्रायम्बिल का लाभ लेने की बात पूज्य श्री के पास प्रस्तुत की, पूज्य श्री ने श्री संघ द्वारा वह बात मंजूर करायी । खूब ठाठ से सामुदायिक विधि के साथ सैकड़ों पाराधकों ने श्रीपद की अोली जी की आराधना पूज्य श्री के मार्मिक प्रवचनों से उत्पन्न अपूर्व भावोल्लास से की। उस अोली के बीच में श्री संघ ने पूज्य श्री को उदयपुर श्री संघ के लाभार्थ देहरासरों के इन्तजाम की अव्यवस्था टालने के शुभ प्राशय को समुचित १६६
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy